उदयपुर (राजस्थान) – उदयपुर शहर से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित कानपुर ग्राम पंचायत को उदयपुर नगर निगम में शामिल किए जाने के प्रस्ताव का तीव्र विरोध देखने को मिला। सोमवार को गांव के बाजार पूरी तरह बंद रहे और हजारों ग्रामीणों ने रैली निकालकर जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी की और बेरिकेड्स को हटाने की कोशिश भी की। बाद में एक ज्ञापन सौंपकर ग्रामीणों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
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📍 विरोध की आग: एकजुट हुए कानपुर और आसपास के 12 गांव
कानपुर, खरबडिया, खेड़ा कानपुर, कलड़वास, पारा खेत, मटून, कमलोद, डागियो की पंचोली, टीलाखेड़ा, भोइयों की पंचोली समेत 12 गांवों के ग्रामीण प्रदर्शन में शामिल हुए।
सुबह से ही कानपुर गांव का बाजार बंद रहा। बाद में सभी ग्रामीण बस स्टैंड पर एकत्रित हुए और वाहनों के काफिले के रूप में उदयपुर कलेक्ट्रेट की ओर कूच किया।
🚜 “हम गांव हैं, हमें गांव ही रहने दीजिए” – तख्तियों पर गूंजा संदेश
प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था –
“हम गांव हैं, हमें गांवों में ही रहने दीजिए।”
प्रदर्शन में महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हुईं और उन्होंने हाथों में पोस्टर लेकर विरोध जताया।
कुछ प्रदर्शनकारियों ने बेरिकेड्स पर चढ़ने की कोशिश भी की, जिससे मौके पर तैनात पुलिस को सख्ती बरतनी पड़ी।

👥 सर्व समाज एकजुट: नगर निगम सीमा विस्तार का विरोध
पूर्व उपसरपंच मदनलाल डांगी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि –
“यह सर्व समाज का विरोध है। किसान, व्यापारी, पशुपालक – कोई भी नगर निगम में नहीं आना चाहता। फिर भी जबरदस्ती ये निर्णय लिया जा रहा है।”
ग्रामीणों का कहना है कि उनकी ग्राम पंचायतें स्वशासी हैं और गांव की पहचान को बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
उन्हें डर है कि निगम में शामिल होते ही भूमि उपयोग परिवर्तन (LUC), टैक्स बढ़ोतरी और शहरी नियमों का बोझ उन पर आ जाएगा।
🌱 “1 रुपये का विकास नहीं हुआ, फिर नगर निगम क्यों?”
ग्रामीणों ने कहा कि यह क्षेत्र ग्रीन बेल्ट और वेटलैंड एरिया में आता है।
“पूर्व में जब इन गांवों को यूआईटी (Urban Improvement Trust) में लिया गया, तब भी कोई ठोस विकास नहीं हुआ।”
ग्रामीणों का कहना है कि शहरीकरण थोपना अनुचित है, जब गांवों की मूलभूत सुविधाओं की भी पूर्ति नहीं हो रही है।
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😠 विधायक पर भी फूटा गुस्सा
प्रदर्शनकारियों ने उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा के खिलाफ भी नाराजगी जाहिर की।
“जनप्रतिनिधि होकर भी उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी। क्या गांव वालों की भावनाएं कोई मायने नहीं रखती?”
ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।
